गीत
मैं हृदय की काँवरी में भावना का नीर भर कर,
प्रेमदेवी के पगों को अश्रु से धोने चली हूँ।
तुम कहो! क्या संग चलोगे ?
जी करे यदि तब हि आना, प्रिय कोई बंधन नहीं है।
प्रेयसी की चूनरी है राह में कंचन नहीं है।
इस डगर में प्रेम ही है धर्म और ईमान दोऊ
प्रेम जब बाँधे हृदय तो टूट जाते हैं जनेऊ।
मैं नयन की अंजुरी में श्वेतवर्णी फूल लेकर,
प्रेमदेवी के पगों में सुरभियाँ बोने चली हूँ
तुम कहो! क्या संग चलोगे ?
इस धरा के व्यास भर में प्रेम का अवमान ऐसा
युद्ध की स्मारिकायें, प्रेम का शिलपट न देखा
मात्र ये ही मार्ग जिसमें मील के पत्थर नहीं हैं
ज्ञात है ये राह जिनको, पास उनके स्वर नहीं हैं।
मैं अधर की रेहली पर श्लोकरूपी मौन लेकर
प्रेमदेवी के पगों पर शीश धर रोने चली हूँ।
तुम कहो ! क्या संग चलोगे ?
शिवा अवस्थी