गीत
कभी-कभी ये शब्द मौन तो कभी मुखर हो जाते हैं
अभी खुशी का साथ था यह नयन विकल रोज आते हैं
बंधा हुआ ये भाग्य साथ हर कदम इसी पर चलना है
नहीं मिला जो सुख किस्मत थी ,हाथों को क्यों मलना है
कहीं प्रहर जब जाग के बीते सहर तभी पाई मन ने.
हुई ज्ञान की ज्योति प्रकाशित कटे-छटे से जीवन में ..
कर्म करे जो आज फसल कल वही यहां बो जाते हैं ..
कभी अधर का साथ …
बसे रहे सद्गुण सदैव और कलुषित न हो पथ अपना..
सजा रहे अपलक अखियन में मधुर मधुर पावन सपना
कर्म करे हर अहम त्याग के बने धरा के जैसे हम ..
चलो बने शीतल पुरवाई बहे हवा के जैसे हम ..
अक्सर झंझावत अमर्ष से यहां सुपथ खो जाते हैं
कभी अधर का….
धरा सिखाती लहरी अगर तो गगन सिखाता विनम्रता
नदी सिखाती कर्म पवन हित महापुरुष ये मानवता
सुभग सुखद जीवन पाया उस ईश्वर का आभार करें
विमुख रहे जो सुविधाओं से उनका भी उद्धार करें
सदाचार से नेह में बंधके हम जग के हो जाते हैं
कभी अधर….
मनीषा जोशी मनी…