गीत
गीत
क्षेत्रपाल शर्मा
मैं इस घर हूं, तुम उस घर हो, खुशबू-वाला हाथ नहीं हैं ।
तुम भी तुम हो,मैं भी मैं हूं पहले वाली बात नहीं हैं ।।
हर्षित तन था, हर्षित मन भी, समय ठहरने की मनुहारें ।समय काटने की मजबूरी, अब हाथ छुड़ाएं बूढ़े, बारें धूमिल हैं सब भव्य नजारे काया का भी साथ नहीं है ।। तुम भी ………
सब-कुछ-है, पर-नहीं-काम का, बदल गए अपनों के तेवर । ठाठ-बाट सब छूटे पीछे, वृथ, अनमोल जड़ाऊँ जेवर । दिन ही दिन हैं, बेचैनी के, सपनों वाली रात नहीं है ।। तुम भी ………
ज्योतिर्मयी नयन अंधराए,
लोपित हुआ वरन कंचन-सा । ज्ञान-बावरा भटके मनुआ, झरे पात कंटक-ठनठन सा । हरिया जायें खेत, बाग़-वन, अब ऐसी बरसात नहीं है ।। तुम भी……..