#गीत
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■ दिन और रात
【प्रणय प्रभात】
जनम-जनम से देते आए
दोनों इक दूजे को मात।
क्रीम की डिबिया जैसा दिन
काजल की डिबिया सी रात।।
★ दोनों के अपने शिकवे
दोनों के हैं अलग गिले।
बीच में बैरन साँझ रही
दोनों मिलकर नहीं मिले।
जन्मजात दुश्मन कुदरत ने
ऐसी की दोनों से घात।
क्रीम की डिबिया जैसा दिन
काजल की डिबिया सी रात।।
★ पूरक है इक दूजे के
बने मगर पर्याय नहीं।
इक दूजे के संग दोनों
कर पाते हैं न्याय नहीं।
कैसे कभी मुख़ातिब होंगे
कैसे कर पाएंगे बात?
क्रीम की डिबिया जैसा दिन
काजल की डिबिया सी रात।।
★ इसको उजलेपन पे दर्प
उसको मादकता पे गर्व
इसे मिले होली के रंग
उसे दिवाली जैसा पर्व।
दिखा रहे हैं युगों युगों से
एक दूसरे को औक़ात।
क्रीम की डिबिया जैसा दिन
काजल की डिबिया सी रात।।
■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)