गीत
सुनो प्रिये! इस प्रेम पथिक को तुम दिल से बाहर कर देना।
तुम्हें अभी तक हार शब्द के जितने भी पहनाए मैंने,
ख्वाबों में आकर अधरों के जितने जाम पिलाए मैंने।
जितने भी हैं गीत बनाए नाम तुम्हारा जोड़ जोड़ कर,
सारी मधुरिम शब्द कथाओं को खत से बाहर कर देना।
सुनो प्रिये! इस प्रेम पथिक को तुम दिल से बाहर कर देना।
कभी न खुद को याद दिलाना प्रथम निवाला इन हाथों का
कभी न जग को लगने देना पता प्रेम की मृदु बातों का।
तुमने मन के भीतर मेरी जो तस्वीर संजो रखी हो,
उसके टुकड़े टुकड़े करके, बस मन से बाहर कर देना।
सुनो प्रिये! इस प्रेम पथिक को तुम दिल से बाहर कर देना।
प्रस्तावित मृत का ये हक है, सात जनम तक प्यार कर सके।
जिसको छोड़ चला है जग में, उसकी सारी व्यथा हर सके।
जैसे मृत अवशेष विसर्जित, गंगा में सब कर देते हैं।
मेरे सारे स्पर्शों को, बस तन से बाहर कर देना।
सुनो प्रिये! इस प्रेम पथिक को तुम दिल से बाहर कर देना।