गीत
बोध अतुल्य सौन्दर्य अपरितं
लावण्या रसना तुम प्रियतम ।
हुआ हृदय झँकृत देखा जब ,
अपरिभाषित अनन्त अनुपम ।।
असंख्य रश्मि बिखराये दिनकर
मुख मण्डल दमके कुछ हटकर ।
प्रीत अलौकिक अद्भुत मधुभर,
खिल गए सुमन तुमको यूँ पाकर।।
दिव्य चाँदनी लगती मधुरिम ,
तम में ज्योति जगाती प्रतिपल ।
अधर भरे रस रँग सजे से ,
खिले रहें ये हृदय सुमन दल ।।
नाचे मन मयूर अब चंचल ,
नयनोँ के अँतर है हलचल ।
स्पँदन साँसोँ की ऊष्मित ,
पिला मुझे दो प्रेम हलाहल ।।
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@ अरुण त्रिवेदी अनुपम