हो गया है मन बसंती
गीत-हो गया है मन बसंती
सप्त रंगों से सुसज्जित,क्षिति गगन हर्षित हुए हैं।
सृष्टि के शृंगार हित ज्यों, नव पुहुप अर्पित हुए हैं।
दूर तक नभ द्वीप सुन्दर, हर्ष मय हर कोण जग का।
वृत्तियाँ अपनी भुलाकर, है प्रफुल्लित शूल मग का।
ओढ़ घूँघट सप्त वर्णी, वारुणी वसुधा विषय रत।
#हो गया है मन बसंती, हैं सरस सुधियाँ स्वतः नत।
उर निलय को बांधने हित, नव वलय निर्मित हुए हैं।
सृष्टि के शृंगार हित ज्यों….
पीत पट परिधान पावन,पुष्प परिमल से भरे पथ।
रति रसायन,राग रोचक,अवतरित आभास का रथ।
मंजरी मन मोद भरतीं, मोर मधुबन में मुदित है।
मत्त मौसम,मोहिनी ऋतु,पीर उर में क्या उचित है?
वासते जो विधु हृदय में, देव सम अर्चित हुए हैं ।
सृष्टि के शृंगार हित ज्यों……
नेह अभिलाषी व्यथित मन,मधु मिलन की आस करता।
रास आया ही नहीं यह, चन्द्र के सँग रास करता।
मृदु मुकुल मंजुल मनोहर, मोह का मन्दार मौसम ।
पूर्व जन्मित पाश पावन, प्रेम का प्रतिसाद अनुपम।
पा लिया प्रिय प्यार पारस,पुण्य शत अर्जित हुए हैं।
सृष्टि के शृंगार हित ज्यों….
पत्र पल्लव पढ़ रहे नित,प्रीति की पुस्तक परस्पर।
चित्र चिन्तन चेतना में, चाह में जगती चराचर ।
सोम रस सौन्दर्य साधित,स्वप्न सुखमय साथ सुरभित।
हर्ष अलबेला अनूठा, अस्ति आतुर आस अगणित।
गीत गाकर गुनगुनाकर, ये अधर गर्वित हुए हैं ।।
सृष्टि के शृंगार हित ज्यों, नव पुहुप अर्पित हुए हैं।।
✍Urvashi