गीत
क्या कर लेगा कोई तुम्हारा, अड़े रहो
आकाशी बूँदों का, अस्तित्व नहीं होता
रात रात भर, जाग जाग कर
नयन क्यों खोवै
पल दो पल की नींद तुम्हारी
सपन क्यों बोवै
लेनी है यदि साँस धरा पर, अड़े रहो
रातों में सूरज का, तेजत्व नहीं होता।
जीती तुमने जंग हजारों
अपने कौशल से
अब क्यों हारा थका बैठा है
भीगे आँचल से
यही मिली है सीख हमें तो, डटे रहो
रण में कभी भीरु का, वीरत्व नहीं होता
छोड़ भी दे तू अब यह कहना
प्रभु की इच्छा
क्या गीता क्या रामायण, बस
मन की इच्छा
क्या कर लेगा काल तुम्हारा, खड़े रहो
आकाशी चीजों में, सतीत्व नहीं होता।।
सूर्यकांत