गीत
मैं खुद के साथ हूँ
फिर भी अकेला
गीत गाता हूँ
नयन में आँसुओं की धार लेकर
गुनगुनाता हूँ।
समर बेचैन तो करता
हृदय में हूक भी उठती
ये रिश्ते दिल जलाते हैं
यही सबको बताता हूँ।
हृदय में पीर का पर्वत छुपाए
मुस्कराता हूँ
मैं खुद के साथ हूँ
फिर भी अकेला
मानकर सबको झमेला
नयी कुछ बात कह
जग को जगत से मैं बचाता हूँ
ये रिश्ते दिल जलाते हैं
यही सबको बताता हूँ।
मैं सबके साथ हूँ
फिर भी अकेला
गुनगुनाता हूँ
दुश्मनों से प्यार के रिश्ते निभाता हूँ
मुस्कुराकर,गुनगुनाता गीत गाता हूँ
मैं खुद के साथ हूँ
फिर भी अकेला
इस जगत का एक झमेला
गीत को लिखकर
हृदय में प्राण पाता हूँ।
कृपा मित्रों की नित बरसे
यही है कामना मेरी
टिप्पणी में भर रहे संदेश पाता हूँ
निरंतर मुस्कराता हूँ
हृदय से गीत गाता हूँ
मैं सबके साथ हूँ
फिर भी अकेला
मुस्कुराता हूँ।
-अनिल कुमार मिश्र