गीत
गीत
इसमें उसका ही सब है दोष
नौ दिन चढ़े अढ़ाई कोस,
बेमन से जब आगे बढ़ता
मंजिल का क्या इसमें दोष?
मंजिल कहीं है,ध्यान कहीं है
लगता केवल विश्राम सही है,
मंजिल मिलेगी कब और कैसे?
बोलो इसमें किसका है दोष?
आगे बढ़ो मन खूब लगाकर
पहुँचोगे तब ही मंजिल पर,
भरो स्वयं के मन में जोश
मंजिल छुकर करो जय घोष।
वरना ऐसे पड़े ही रहना
दूर हैं मंजिल कहते रहना,
फिर तेरी किस्मत का दोष
नौ दिन चले अढ़ाई कोष।
✍ सुधीर श्रीवास्तव