गीत
ढूँढ़ रहें हैं अब तक जिसको सारे वेद पुराण में
गुरुओं के द्वारे पर जाकर गीता और कुरान में,
मंदिर की घंटी में ढूँढ़े मस्जिद की अज़ान में
जा जा के जिसे ढूंढ रहें हम जीज़स के मकान में
ईश्वर,अल्लाह मानो जो भी रहता है इंसान में….
ना वो ऊंचे पर्वत पर है ना तीरथ स्थान में
ना बाज़ारों में मिलता है ना ही है शमशान में,
ना मिलता धरती के भीतर ना ही आसमान में
ईश्वर अल्लाह मानो जो भी रहता है इंसान में…
करना क्षमा प्रभु हमको पहचान सकी ना मै तुमको,
आँखें खुली हैं आज हमारी पाया ढूंढ रही जिसको,
खोजते हैं जिन्हें भटक- भटक कर बाहर यूँ अवसान में,
ईश्वर अल्लाह मानो जो भी रहता है इंसान में…..