गीत
“मूक-व्यथा मैं किसे सुनाऊँ?”
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प्रीति राम की,समझ न पाऊँ।
मूक -व्यथा मैं,किसे सुनाऊँ?
भक्त भीलिनी, पंथ बुहारे
नयन नीर भर, बाट निहारे।।
कंद-मूल फल, चखि-चखि डारे।
सुमन बिछा पथ, राम पुकारे।
प्रभु-पद-पंकज, कैसे पाऊँ?
मूक -व्यथा मैं, किसे सुनाऊँ?
उन्मादित नभ, बादल छाओ।
सरस-नेह भू पर, छितराओ।।
शुष्क -नयन की,प्यास बुझाओ।
अब शबरी को, राह दिखाओ।।
राम-दरश की आस लगाऊँ।
मूक -व्यथा मैं किसे सुनाऊँ?
सहसा कूल -सरित हरषाए।
षटपद, सरसिज पर मँडराए।।
सुरभित,पुष्पित,उपवन छाए।
खग-कलरव-स्वर कर्ण सुहाए।।
प्रेम-तृषित मन में अकुलाऊँ।
मूक-व्यथा मैं किसे सुनाऊँ?
लखन-राम मूरति मन भाई।
राम- चरण शबरी बिलखाई।।
आँचल से आसन सुथराई।
नेह-सने चुन, बेर खिलाई।।
दुख-भंजन -पग, शीश नवाऊँ।
मूक -व्यथा मैं किसे सुनाऊँ?
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर