गीत
अधरों पर घुलता रहा, जीवन का संगीत।
अपनी परछाई मुझे, क्यों करती भयभीत।। १
है जीवन संगीत-सम,हँसते-गाते झूम।
सुर छिड़ जाये कौन- सा,किसको है मालूम।। २
साँस-साँस सुर से सजी,जीवन है संगीत।
सुख दुख है स्वर की लहर,गा कर पाओ जीत।। ३
सत कर्मों की बाँसुरी,छेड़े मधुरिम गीत।
व्याकुलता को त्याग कर, इससे कर लो प्रीत।। ४
कभी शोर में गीत है, कभी गीत में शोर।
मन के भावों से जुड़ी, जीवन की हर डोर।। ५
सजा हुआ संगीत से, जीवन का हर अंश।
है जीवन इसके बिना, केवल चुभता दंश।। ६
-लक्ष्मी सिंह