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8 May 2020 · 1 min read

गीत

भक्ति-गीत

तुहिन कण मुक्तक चमकते
भोर छितराने लगी,
मोद मंजुल मालिनी मन
मंद मुस्काने लगी।

शुभ्र शुचिता स्वर्ण सज्जित
नरगिसी आभास से,
देह झिलमिल ओढ़ चूनर
दमकती उल्लास से।
ईश की कर वंदना दर
धूप महकाने लगी,
मोद मंजुल मालिनी मन
मंद मुस्काने लगी।

स्पर्श करके घंटिका मृदु
शब्द मुखरित हो गए,
लोभ-लालच त्याग उर से
भाव कुसुमित हो गए।
द्वेष अंतस से मिटा शुचि
प्रीति बरसाने लगी,
मोद मंजुल मालिनी मन
मंद मुस्काने लगी।

निष्कपट दिल जगतहित जन
जागरण कर प्रार्थना,
देव मंदिर में खड़ी धर
धैर्य करती कामना।
चेतना को शुद्ध कर निज
हृदय इठलाने लगी,
मोद मंजुल मालिनी मन
मंद मुस्काने लगी।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 1 Comment · 244 Views
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