गीत
मित्रो ! जय माँ शारदे !! जय वसंत !!!
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हर पतझड़ के बाद
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एक नया ऋतुराज हँसा है
हर पतझड़ के बाद
सुरभित कलिका की गलियों में
थिरकी पुरवा आज
पुलई-पुलई झाँक रहा है
ताजमहल का ताज
नीले-पीले इन खेतों में
बसा एक रसराज
हर पतझड़ के बाद
सरसों पहनी पीली चुनरी
तीसी के कनफूल
माला लेकर दौड़ रहे हैं
खिले-खिले वनफूल
गेहूँ झूला झुला रहा है
चना रखा महसूल
हर पतझड़ के बाद
शैशिर पवन रजाई ओढ़े
ताप रहा है आग
कपड़ा-लत्ता फींच रहा है
वह रंगीला फाग
कलरव की चहकन की भाषा
नवगीतों का राग
हर पतझड़ के बाद
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ