गीत ग़ज़ल कुछ भी नहीं
गीत ग़ज़ल कुछ भी नहीं, नहि मुक्तक नहीं छंद ।
यूँ ही घुमा फिराय के, रखे शब्द हैं चंद ।।
रखे शब्द हैं चंद, नहीं कुछ मतलब जिनका ।
बिलकुल हैं बेकार, व्यर्थ है पढ़ना इनका ।।
कहो साथियो आखिर इसमें, क्या है मेरी भूल ।
अगर आप भी पढ़कर इनको,बन जाएं अप्रैल फूल ।।