गीत शब्द
गीत
शब्द हमारे मन का चित्रण
शब्दों की हरियाली है
जब भी शब्द झरे अधरों से
शब्दों की रखवाली है ।।
शब्द सुमन अर्पण यह जन का
अभिलाषा उदबोधन का
भाव शून्य जब जगत् खड़ा हो
तेरे मेरे मर्दन का
जब भी शब्द मरे कमरों में
शब्दों की बिकवाली है…..
शब्द लहर है, मन का सागर
नदिया सा उच्छवास रे
भीगी-भीगी पलकें कहतीं
यही अपना विश्वास रे
जब भी शब्द सजे कजरों में
शब्दों की दीवाली है…
मर्यादा का दर्पण देखा
बदला-बदला मुखमंडल
एक निशानी इतिहासों की
उड़ता-उड़ता यह आंचल
जब भी शब्द घिरे खतरों से
तब तब बात सँभाली है।।
सूर्यकांत