गीत- वही रहना मुनासिब है…
वही रहना मुनासिब है जहाँ मिलती हिफाज़त हो।
वहाँ से दूर हो जाओ जहाँ आफ़त ही आफ़त हो।।
मिले दौलत बिना इज़्ज़त सुनों धिक्कार जीना है।
जहाँ मेहनत लिए चाहत वहाँ संस्कार जीना है।
तना सीना उठा हो सिर बड़ी सबसे ये रंगत हो।
वहाँ से दूर हो जाओ जहाँ आफ़त ही आफ़त हो।।
ज़हर देकर मुहब्बत से कहे पी और जी ले तू।
लिए मुस्क़ान पी ले और हँसकर यार जी ले तू।
परीक्षा से नहीं हारो अगर दिल में इबादत हो।
वहाँ से दूर हो जाओ जहाँ आफ़त ही आफ़त हो।।
नहीं विश्वास में अँधा हुआ बंदा वही बंदा।
परखकर जीत जाए जो सफल उसका रहे धंधा।
मिलो उनसे करो यारी लिए दिल में जो चाहत हो।
वहाँ से दूर हो जाओ जहाँ आफ़त ही आफ़त हो।।
कई चेहरे लगाकर लोग फिरते हैं ज़माने में।
करो पहचान घुलमिल कर ख़ुशी आए फ़साने में।
मिले संगीत शब्दों को तभी ‘प्रीतम’ लियाकत हो।
वहाँ से दूर हो जाओ जहाँ आफ़त ही आफ़त हो।।
आर. एस. ‘प्रीतम’