गीत- लगे मीठी जिसे भी प्रेम की भाषा…
लगे मीठी जिसे भी प्रेम की भाषा हताशा भूल जाए वो।
जिसे हो लक्ष्य अभिलाषा निराशा भूल जाए वो।।
मिलन की राह जाने और चाहत की करे पूजा।
बड़ा उससे ज़माने में नहीं मानव कोई दूजा।
सभी अपने लगें नफ़रत तमाशा भूल जाए वो।
जिसे हो लक्ष्य अभिलाषा निराशा भूल जाए वो।।
शरद की धूप बन जाओ खिलो मधुबन सरीखे तुम।
बुझाओ वैर की ज्वाला बनो नित जल सरीखे तुम।
बने ‘प्रीतम’ बुराई का खुलासा भूल जाए वो।
जिसे हो लक्ष्य अभिलाषा निराशा भूल जाए वो।।
वही तो काम आता है बसा करता हृदय में जो।
वही तो दिल लुभाता पर हँसा करता हृदय में जो।
गुणी मानव बदी की हर पिपासा भूल जाए वो।
जिसे हो लक्ष्य अभिलाषा निराशा भूल जाए वो।।
आर. एस. ‘प्रीतम’