गीत –रात ढल गयी खोई -खोई ,सुबह रहा है पंख पसार
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रात ढल गयी खोई -खोई ,सुबह रहा है पंख पसार.
चाँद पियासा थककर सोया,प्यासा रह गया मेरा प्यार.
दीप जला तों होगा सजनी.
शाम ढली तों होगी कल भी.
लौट रहे खग के कलरव से
गूंजा होगा सारा नभ भी.
कैसे मेरा प्यार बिसर गया?कैसे मन तूने समझाया?
कैसे पलकें बंद हो गयी, कैसे तेरा मन भरमाया ?
रजनीगन्धा इठलाती है,गंधों के संकेत बिखेरे.
देखो तों किस अहा! अदा से बैठे फूल भ्रमर को घेरे.
छंद हवा पर मुखरित हो तो
प्रिय ने तुम्हें बुलाया जानो.
यादें जब मन लगे कुरेदने
तन बेबस हो जाये जानो.
जनम-जनम का तेरा प्रियतम तेरी राहों में बैठा है.
व्याकुल,आकुल,विरह-व्यथा से तेरी चाहों में पैठा है.
कितनी शीतल मन्द हवा है!
कितना मौसम आज जवां है.
कितना व्याकुल नद का पानी !
कैसा पागल आज फिजाँ है !
भूल न जाना संकेतों को ,आज यार,तुम आ ही जाना.
रात अकेली थर-थर काँपे,देती है वह हमको ताना.
आ जाना तुम शाम ढले तों.
आ जाना तुम दीप जले तों.
मन्दिर के घड़ियाल बजे तों
अस्ताचल को सूर्य चले तों.
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