गीत मेरा
गीत मेरा
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गीत पल छिन जिन्दगी के साथ में चलता रहा ।
मैं जला तो संग मेरे दीप बन जलता रहा ।।
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रूप ,रस,मकरंद से संबंध है जो फूल का ,
है अनुप अनुबंध जैसे पाल से मस्तूल का
भावना की कोख में ये शिशु बना पलता रहा ।१
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आँख में आँसू घिरे , भर अश्क आये गीत के,
या कभी मन में बसे जब , भाव टूटी प्रीत के,
पीर बनकर ये कराहा और मन छलता रहा ।२
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जब मुहब्बत से किसी ने बाँह के बंधन कसे ,
नेह के कुछ बीज अंकुर से उगे उर में बसे,
गीत मेरा तो गज़ल के रूप में ढलता रहा ।३
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छंद बन कर ये छलकता , तो लगा रसखान है ,
सूर का तुलसी कबीरा का सुनाता ज्ञान है ,
गीत मीरा बन गया हिम की तरह गलता रहा ।४
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-महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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