गीत- मिले हैं चार दिन जीवन के…
मिले हैं चार दिन जीवन के चंदन-बू भरो इनमें।
बनें चंदन हमीं यारों नफ़ासत नित जड़ो इनमें।।
अदावत शूल है सुनलो किसी को सुख नहीं देती।
मुहब्बत फूल है सुनलो किसी को दुख नहीं देती।
खिले हैं रूह के दर्पण हृदय का रुत धरो इनमें।
बनें चंदन हमीं यारों नफ़ासत हँस जड़ो इनमें।।
बुराई धूल जैसी है इसे दिल से उड़ा डालो।
नज़र की क़ैद में हमदम क़मर का प्यार इक पालो।
जवानी साख अपनी तुम बढ़ाकर लय करो इनमें।
बनें चंदन हमीं यारों नफ़ासत हँस जड़ो इनमें।।
किसी का प्यार पाकर तुम शिक़ायत भूल जाओगे।
मेरा दावा यही है सुन ख़ुशी से फूल जाओगे।
सहर हो शाम चाहे फिर सदा ताक़त भरो इनमें।
बनें चंदन हमीं यारों नफ़ासत हँस जड़ो इनमें।।
आर. एस. ‘प्रीतम’