गीत भटक रहा बंजारा मन
गीत
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कभी इधर तो कभी उधर
कभी जमीं पे कभी गगन
देखो इत उत भागा फिरता
भटक रहा बंजारा मन ।
जाने क्या क्या सोच रहा
अपनापन बेगानापन
अधरों मे ही डोलता रहता
भटक रहा बंजारा मन ।
तेरा हो या मेरा हो
बडा़ कठिन इस पर बंधन
कितन ताने बाने बुनता
भटक रहा बंजारा मन ।
चंचल है ऒर कोमल है
नाजु़क सा बेचारा मन
नये खिलॊने ढूंढ़ता फिरता
भटक रहा बंजारा मन ।
गीतेश दुबे ” गीत “