गीत- बेटी क्यूँ धनधान्य पराया
गीत ( अजन्मा की पुकार ) *****
बेटी क्यों धनधान्य पराया
गर्भ मातु के मै मुस्काई
देख देख अपनी परछाँई
तभी किरण इक चुभती चमकी
खीच रही मेरी प्रतिछाँई
मेरा कोमल मन अकुलाया *******१*****
फिर सब कुछ सामान्य हो गया
भय भी चादर तान सो गया
बाहर से अनजान रहा मन
खानदान विष बीज बो गया
उभर रहा बंदिश का साया *********२******
समानांतरी रेखा जीवन
त्रिर्यक रेखा महाकाल बन
काट गयी जीवन रेखा को
आंँड़ा तिरछा कर विच्छेदन
रही तडपती मेरी काया **********३*******
माँझा मीन कंठ जिमि ब्यापा
फटी रह गयीं आँखें ”पापा” ,
बहुत पुकारा सुना न तुमनें
कब्र बन रही गर्भक कारा
साया कब बनता सरमाया ***** ४*****
डाक्टर की वह तेज कटारी
अंग कट रहे बारी बारी ,,
लूली लँगडी , सिकुडी सिमटी
अब आयी गर्दन की बारी
देखो सर धड से छितराया ******५*******
चलो अलविदा कहे अजन्मा
फूलो फलो सदा माँ पापा
बीर कलाई होगी सूनी
रोयेगा राखी का धागा
देखी तेरे जग की माया ********६*******
गोप कुमार मिश्र