गीत : प्रेम धुन में प्रीत लय में
प्रेम धुन में प्रीत लय में गुनगुनाएगी ॥
लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी ॥
दृष्टि में मेरी सदा रहता है मुख उसका ।
और मुझको ताकते रहना है सुख उसका ।
मैं भरी बरसात में भी यदि पुकारूँ तो ,
छोडकर सब मुझसे मिलने दौड़ आएगी ॥
लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी ॥
मैं उसे राई सा चाहूँ वो पहाड़ों सा ।
मैं उसे डमरू सा वो चाहे नगाड़ों सा ।
यदि करूँ उससे निवेदन एक चुंबन का ,
वो मेरी बाहों में आकर झूल जाएगी ॥
लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी ॥
गर्त में जब भी निराशा के मैं फँस जाऊँ ।
ठोस दलदल में हताशा के मैं धँस जाऊँ ।
तत्व की बातों से गीता ज्ञान से बढ़कर ,
दे के ढाढस अंततः मुझको बचाएगी ॥
लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी ॥
मुझमें जो भी त्रुटियाँ हैं जो न्यूनताएँ हैं ।
जो भी है अल्पज्ञता जो मूर्खताएँ हैं ।
सबसे ही अवगत है पर वो मारकर ताने ,
हीनता का बोध ना मुझमें जगाएगी ॥
लेखनी मेरी उसी के गीत गाएगी ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति