ग़ज़ल (रखो हौंसला फ़िर न डर है यहाँ)
अलग सा ये’ माना सफ़र है यहाँ
रखो हौंसला फ़िर न डर है यहाँ
भले ही बने अज़नबी से हैं वो
जुड़ा उनसे’ कुछ तो मगर है यहाँ
वही कर जो कहता है दिल, शौक से
भरी फिर खुशी से डगर है यहाँ
खिले ग़ुल शगूफ़े भी विगसे हुए
रवानी की’ ज्यों दोपहर है यहाँ
मिलेंगे महकते हुये दिल जवां
कि जिंदा दिलों का बसर है यहां
डॉक्टर रागिनी शर्मा इंदौर
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