गीत :- प्रियतमा
सुनकर कंगन नूपुर की धुन,
मदहोश न अब मैं हो जाऊँ।
तुम गीतों की आशा मेरी,
जीवन की अभिलाषा मेरी।
तुम उपवन की हरियाली हो,
मैं प्रियदर्शन मैं खो जाऊँ ।।
सुनकर कंगन नूपुर की धुन,
मदहोश न अब मैं हो जाऊँ।
कस्तूरी सा सुंदर यह तन ,
मधुवन जैसा महका यौवन।
मदमस्त रसिक मधुकर बनकर,
बॉंहों में तेरी सो जाऊँ।।
सुनकर कंगन नूपुर की धुन,
मदहोश न अब मैं हो जाऊँ।
आहट तेरी जब भी आए,
खुश्बू मदमस्त महक जाए।
तुम पुष्पमास की शेफाली,
लतिका का हार पिरो जाऊँ।।
सुनकर कंगन नूपुर की धुन,
मदहोश न अब मैं हो जाऊँ।
तुम लज्जालु अतिकोमल सी,
लगती हो स्वेत कमलदल सी।
किंचित तुम और ठहर जाओ,
अधरों का रस पी तो जाऊँ।।
सुनकर कंगन नूपुर की धुन,
मदहोश न अब मैं हो जाऊँ।
स्वरचित
-जगदीश शर्मा ‘सहज’
अशोकनगर, मध्यप्रदेश