गीत., प्रतियोगिता के लिए
गीत……
थी बहुत ही औपचारिक भेंट वो तो
प्रेम का आभास तुमको हो गया क्यों
जब मिले ही थे नहीं नैयनों से नैना
जीत का विश्वास तुमको छू गया क्यों
कंठ सूखा था कहां बोले थे नैना और कुछ संवेदनाएं भी नहीं थी
कब खिले थे पुष्प मन की वाटिका के
ये ह्रदय में भावनाएं भी नहीं थी
जब प्रणय की आहटें भी लुप्त थी तो
रच दिया इतिहास मन में बो गया क्यों
थी बहुत ही औपचारिक भेंट हो तो प्रेम का आभास तुमको हो गया क्यों
कामना के पंख हलचल कर रहे अब
कह रहे हैं उड़ चलू मैं हो जहां तुम
बांध जिस से बाँधकर ये मन रखा था
टूटकर ढूंढे तुझे अब है कहां तू .
अश्रु चौमासा बने बहते हैं हर पल
प्रेम में मधुमास तुमसे खो गया क्यों
थी बहुत ही औपचारिक भेंट वो तो प्रेम का आभास तुमको हो गया क्यों
मानती हूं ठेस पहुंची है ह्रदय को
पा लिया है किंतु अब मैंने अभय को
ले लिया वैराग्य तेरे साथ मैंने
शुद्ध कर दे गात के पावन निलय को
प्रेम पथ पर जब निकल कर आ गई मैं
फिर कहो सन्यास तुम को छू गया क्यों
थी बहुत ही औपचारिक भेंट हो तो
प्रेम का आभास तुमको हो गया क्या
मनीषा जोशी मनी