गीत- न देखूँ तो मुझे देखे
न देखूँ तो मुझे देखे चुरा नज़रें मुहब्बत में।
छिपा उल्फ़त सताती दिल बड़ी ज़ालिम है चाहत में।।
करूँ इज़हार हँसकर वो मना करती हराती है।
मगर मुस्क़ान भरकर फिर नई आशा जगाती है।
अनोखी है सलौनी है बसी दिल में इबादत में।
छिपा उल्फ़त सताती दिल बड़ी ज़ालिम है चाहत में।।
अदाओं में शराफ़त में बड़ी भोली निराली है।
उसे देखूँ असर ऐसा करे ज्यों चाय प्याली है।
ख़ुशी उससे बड़ी ये है खड़ी मिलती हिफाज़त में।
छिपा उल्फ़त सताती दिल बड़ी ज़ालिम है चाहत में।।
दुपट्टा ख़ुद गिराती है सदा छत से मुझी पर वो
मुझे अपना दिखाकर दिल लुटाती है मुझी पर वो।
मुझे नित प्यार आता है सनम की हर नज़ाकत में।
छिपा उल्फ़त सताती दिल बड़ी ज़ालिम है चाहत में।।
आर. एस. ‘प्रीतम’