गीत- न ज़िल्लत कर किसी की तू…
न ज़िल्लत कर किसी की तू मुहब्बत कर हिफाज़त कर।
तेरी रब से बने पहचान सभी से बस शराफ़त कर।।
हुनर का फल सदा मिलता नहीं छिपता छिपाने से।
हमेशा ज़ख्म भरता है सही मरहम लगाने से।
तू सच्चाई की कर तारीफ़ ख़ुदी से ये इनायत कर।
तेरी रब से बने पहचान सभी से बस शराफ़त कर।।
यहाँ नफ़रत सुनो है पंक जैसी कभी मत कर।
ख़ुदा के ख़ौफ़ से प्यारे हमेशा डर सदा ही डर।
सिफ़ारिश है बड़ा अनमोल जीवन ये लियाक़त कर।
तेरी रब से बने पहचान सभी से बस शराफ़त कर।।
रिवायत भूल लिखावट लिख अदावत को भुलाने की।
वतन से फ़र्ज़ की बातें रहें दिल में निभाने की।
नफ़ासत से नहीं ‘प्रीतम’ बदी से ही बग़ावत कर।
तेरी रब से बने पहचान सभी से बस शराफ़त कर।।
आर. एस. ‘प्रीतम’
शब्दार्थ- ज़िल्लत- अपमान/बेइज्ज़ती, हिफाज़त- सुरक्षा, लियाक़त- योग्यता, रिवायत- सुनी-सुनाई बातें, अदावत- शत्रुता, नफ़ासत- सज्जनता, बदी- बुराई, बग़ावत- विरोध