गीत- निग़ाहों से निग़ाहें जब…
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निग़ाहों से निग़ाहें जब मिलेंगी प्यार आएगा।
जहां से ख़ूबसूरत फिर नज़र में यार आएगा।।
दिलों के मेल से ज़न्नत सदा दुनिया दिखा करती।
लबों की लय मधुर हो तो अमर चाहत हुआ करती।
मुहब्बत से खिलेगी जब ग़ज़ल अश’आर आएगा।
जहां से ख़ूबसूरत फिर नज़र में यार आएगा।।
हमारी ज़िंदगी शबनम हमारी चाह गुल-गुलशन।
तभी महके सदा चहके इबादत और घर-आँगन।
बनेंगे शीप-मोती हम तभी विस्तार आएगा।
जहां से ख़ूबसूरत फिर नज़र में यार आएगा।।
रहें हम दर्द में शामिल ख़ुशी में झूमकर निखरें।
करें वादा ग़लत फ़हमी नहीं विश्वास से बिखरें।
तभी जीवन ख़रा हो हर ज़ुदा संस्कार आएगा।
जहां से ख़ूबसूरत फिर नज़र में यार आएगा।।
आर. एस. ‘प्रीतम’