गीत – धरती पुलकित
. …. गीत ….
धरती पुलकित हो उठे आज
जन- जन का दुख हरना होगा
इस कर्म- भूमि में असुरों से
फिर धर्म- युद्ध करना होगा
कितने वीरों ने झूम- झूम
फाँसी का फंदा चूम- चूम
अपनी रक्तिम इक बूँद- बूँद
अर्पित की आँखें मूँद- मूँद
इतिहास रचा हर बाला ने
गर्वित होकर कहना होगा ।
इस कर्म- भूमि… …………।
कटते दुष्टों के रुंड- मुंड
गिरते भू पर थे झुंड- झुंड
थी नीति कृष्ण की धूम- धूम
अर्जुन वाणो ने घूम- घूम
उत्थान किया था भारत का
संस्मरण तुम्हें रखना होगा
इस कर्म- भूमि ………………
मत शक्ति स्वयं की भूल- भूल
बल , क्षमा- नीति का मूल- मूल
उठ सिन्धु लाँघ तू कूल- कूल
निर्बलता जग का शूल- शूल
क्यों चुप बैठे हो युवा आज ?
मानव हित में मरना होगा
परिजन , यदि दुर्जन , नाश करो
अर्जुन सा दुःख सहना होगा
इस कर्म- भूमि ……………
डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ