गीत :- दिल मेरा इक कच्चा शीशा
4.2.17 * गीत * 9. 00
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दिल मेरा है इक कच्चा शीशा
दिल में रहता है दिलबर मेरा
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टूट गया गर् शीशा- दिल तो
ग़म नहीं,पर ग़म है कुछ ऐसा
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दिल- शीशे में दिलबर रहता
चोट लगे ओ ओ दिलबर को
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जान निकल जाती है दिल से
आह निकलती है जो दिल से
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दिल का मालिक दिल- शीशा
पिघला कब ना जाने – मन ये
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पीर पराई ,पर दिल अपना है
ख़ुद से ज्यादा भाता दिलबर
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कैसे समझाये नादां दिल को
सुध अपनी खो ले दिलजाना
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अपना दिल फिर अपना दिल
शीशा हो या दिल अपना फिर
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टूट गया तो बिखर गया सब
जीवन आना – जाना है बस
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कैसे अब समझाऊं दिल को
सम्भल जरा ओ सम्भल जरा
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दिल मेरा है इक कच्चा शीशा
ठेस लगी और टूट गया फिर
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नादां है दिल अपना हो कर
अपनों का ग़म सह नहीं पाता
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दिल मेरा है इक कच्चा शीशा
कच्चा शीशा कच्चा शीशा ।।
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?मधुप बैरागी