गीत …..थोड़ा जीने का मन हो रहा है
थोड़ा जीने का मन हो रहा है
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आज पीने का मन हो रहा है
थोड़ा जीने का मन हो रहा है
बेरुखी जिंदगी अश्क देती रही
दर्द पीने का मन हो रहा है। ……..
कतरा कतरा नहीं हम पीयेगें
टुकड़ों टुकड़ों में अब ना जिएंगे
खुद से मिलने का मन हो रहा है ….
वो ना सोचे तो क्यूं मैं ही सोचूं
डोर रिश्तो की क्यूं मैं ही खींचू
तन्हा रहने का मन हो रहा है…….
थोड़ा जीने का मन हो रहा है✍✍
खत उसने वफा के जलाए
कसमे वादे नहीं काम आए
भूल जाने का मन हो रहा है……
अब गली क्या शहर छोड़ देंगे
रूख यादों के सब मोड़ देंगे
मुस्कुराने का मन हो रहा है…..
आज पीने का मन हो रहा है
थोड़ा जीने का मन हो रहा है।।
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मूल गीतकार. ..
डॉ नरेश कुमार सागर