गीत: जीवन_मृत्यु
न जाने किस डगर पर
जन्म लेकर
फिर विचरना है।
प्रकृति ने हाथ से रचकर
हमें भू-लोक में भेजा।
करोड़ों रश्मियों से
सूर्य के आलोक में भेजा।।
न जाने किस भुवन की ओर
अब प्रस्थान करना है।
न जाने किस डगर पर
जन्म लेकर
फिर विचरना है।।
सृजनकर्ता सभी का ईश्वर
तो एक ही होता।
सभी जीवात्म का छूटा हुआ
घर एक ही होता।।
हजारों रूप ले-लेकर
कलेवर से गुजरना है।
न जाने किस डगर पर
जन्म लेकर
फिर विचरना है।।
किसी की अल्प आयु है
कोई सौ साल तक जीता।
समय के फेर में फँसकर
बड़ी जल्दी सफर बीता ।।
न जाने किस समर पर
युद्धरत होकर उतरना है।
न जाने किस डगर पर
जन्म लेकर
फिर विचरना है।।
– जगदीश शर्मा सहज