गीत- जिसे ख़ुद से शिकायत हो…
जिसे ख़ुद से शिकायत हो करे क्या और की सेवा।
इनायत से इबादत से नफ़ासत से मिले मेवा।।
सितारे देखकर आँखें चमक जाएँ नज़र सुंदर।
चमन को देखकर दिल में गमक आए ज़िगर सुंदर।
रहे हर दौर में हँसके लिए अनुपम हुनर देवा।
इनायत से इबादत से नफ़ासत से मिले मेवा।।
बनो बादल बनो तरुवर बनो दरिया बनो गुलशन।
पवन बनकर बहो हरपल करो शीतल सभी का मन।
चलो हरदिन शराफ़त से अदा ये है हृदय लेवा।
इनायत से इबादत से नफ़ासत से मिले मेवा।।
लिए मुस्क़ान लब पर चल अँधेरे भाग जाएंगे।
तुम्हें यूँ देखकर सोये मनुज सब जाग जाएंगे।
बढ़ोगे प्यार से ‘प्रीतम’ मिलेगी इश्क़ की खेवा।
इनायत से इबादत से नफ़ासत से मिले मेवा।।
आर.एस. ‘प्रीतम’
शब्दार्थ- इनायत- कृपा, इबादत- पूजा, नफ़ासत- सज्जनता, गमक- सुगंध, दौर- समय, हुनर- कला, खेवा- उतराई/नज़राना/मज़दूरी