गीत… कौन है जो
गीत….
हाथ में खंजर लिए हिंसा कराना चाहते।
कौन हैं जो देश को मेरे जलाना चाहते।
स्वर्ग-सी धरती हमारी राग रंगत से भरी।
और रहती है सुवासित हर्ष पुष्पों से हरी।।
उर्वरा इस भूमि को बंजर बनाना चाहते।
कौन हैं जो देश को मेरे जलाना चाहते।।
दिव्यता से पूर्ण है पावन धरा संसार में।
शांति का संदेश देती सत्यता आचार में।।
सौम्यता उत्कर्ष से नीचे गिराना चाहते।
कौन हैं जो देश को मेरे जलाना चाहते।।
पा रहे हर लोग है सुविधा सुरक्षा देश में।
रह रहे अपने तरीके से सभी हर वेश में।।
धर्म भाषा जातियों में हैं लड़ाना चाहते।
कौन हैं जो देश को मेरे जलाना चाहते।।
टूट जाये सभ्यता सद्भाव की डोरी बधी।
काटने को छोड़ते हैं तीर विष बैरी सधी।।
एकता उल्लास अन्तर्मन मिटाना चाहते।
कौन हैं जो देश को मेरे जलाना चाहते।।
हाथ में खंजर लिए हिंसा कराना चाहते।
कौन हैं जो देश को मेरे जलाना चाहते।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)