गीत के मीत
गीत की धुन में तुम हो,
मेरे गीतों की धड़कन।
मेरे साज को सरगम दो,
हमराज मेरे सुनो हमदम।
जब जब पढ़ती हूं गीत मैं,
मैं उसे पढ़ती ही जाती हूं।
रंग न कोई हो इसमें अधूरा,
कई रंगों से मैं सजाती हूं।
हर अक्षर में महसूस करूं,
शब्दों में तुम मुस्काते हो।
बनती है लय जब भी कहीं,
हर गीत मेरा बन जाते हो।
जब जोडूं मैं सुरो को कभी,
संगीत सा तुम रच जाते हो,
मेरे गीतों के प्रिय मीत सुनो,
हर रंग में तुम रच जाते हो।
कोई गीत मेरा तुम बिन पूरा,
न आसान है मै ये कैसे कहूं।
मेरे गीत के मीत यूं बने रहना,
मात्राओं में तुमको गिनती रहूं।
स्वरचित् एवम् मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश