गीतों की दुनियाँ में……..
गीतों की दुनियाँ में, मैं हुँ अकेला,
नही कोई साथी, मेरा इस सफर में।
अकेला ही मैं तो, चला जा रहा हूँ,
अनजाने से, एकांकी डगर में।।
नही कोई साधन, नही कोई खाँका,
करूँ कैसे चित्रण, सुहानी पहर में।
की गीतों की दुनियाँ में, मैं हुँ अकेला,
नही कोई साथी, मेरा इस सफर में।।
अकेला ही मैं तो, चला जा रहा हूँ,
अनजाने से, एकांकी डगर में।।
गीतों की दुनियाँ में……..
कहि झूलती है, शिखाओं से कविता,
कहि पुष्प से, खिलखिलाते ग़ज़ल है।
कहि बैठी कुण्डलिया, है आंख मींचे,
कहि मुक्तको से, बतलाते कमल है।।
कहि तेवरी के, अलग से ही तेवर,
लगे जैसे ग़ुम है, किसी के नज़र में।
की गीतों की दुनियाँ में, मैं हुँ अकेला,
नही कोई साथी, मेरा इस सफर में।।
अकेला ही मैं तो, चला जा रहा हूँ,
अनजाने से, एकांकी डगर में।।
गीतों की दुनियाँ में……..
वो देखो रति करती, सौंदर्य अठखेली,
पनघट पर हास्य, घटा भरते भरते।
मारे कुलाचें, हो रस वीर उत्साहित,
भयानक छुपा सिंह, भय करते करते।।
अद्भुत से दृश्य, आश्चर्य इस जहां के,
करुण, रौद्र, बिभत्स, शांत असर में।
की गीतों की दुनियाँ में, मैं हुँ अकेला,
नही कोई साथी, मेरा इस सफर में।।
अकेला ही मैं तो, चला जा रहा हूँ,
अनजाने से, एकांकी डगर में।।
गीतों की दुनियाँ में……..
हुआ पान सुरमयी, श्रवण छंद दोहे।
भ्रमर सी वो गुँजन, सवईया मन सोहे।।
चौपाई की रिमझिम, वो शीतल बयारे।
सोरठा में मद्धम, रोला गीतिका सँजोये।।
रही ज़िन्दगी जो, ख्वाबो की मेरी,
तो चाहत है बस लू, अब इनके शहर में।
की गीतों की दुनियाँ में, मैं हुँ अकेला,
नही कोई साथी, मेरा इस सफर में।।
अकेला ही मैं तो, चला जा रहा हूँ,
अनजाने से, एकांकी डगर में।।
गीतों की दुनियाँ में……..
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २३/१०/२०१८ )