गीतिका
गीतिका….5
करें कुछ नया
(आधार छंद-गीतिका ,मापनी-२१२२ २१२२ २१२२ २१२)
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बीज मन के बंजरों में रोपना होगा नया ।
फिर बहारें आ सकें पथ खोजना होगा नया ।।
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धूप अंगारे बनी झुलसा रही सबके बदन ।
छाँव पाने का तरीका सोचना होगा नया ।।
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एड़ियों को बींधते काँटे न हिचकाये कभी ।
और ये बिखरें नहीं ढँग जानना होगा नया ।।
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हम सभी बहके हुए हैं होश भी खोये हुए ।
लक्ष्य कोई और हमको ढूँढना होगा नया ।।
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बेइमानी मापदंडों ने बहुत की है सुनो ।
और पैमाना हमें फिर ढालना होगा नया ।।
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मौन होकर के अभी तक चोट खाई हैं बड़ी ।
फिर हमें तेवर दिखाना-देखना होगा नया ।।
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एक भी यदि युग्म मेरा चुभ तुम्हें जाये अगर ।
भाव गीतों में तुम्हें भी बाँधना होगा नया ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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