गीतिका
गीतिका !
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दिव्य ज्ञान अपना अब हमको, इस जग को दिखलाना है ।
विश्वगुरू के सिंहासन पर , देश पुनः बैठाना है ।।1
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आस्तीन में छुपे हुए जो, विषधर उन्हें तलाश करें ।
विष के दाँत तोड़कर उनके, अब विषहीन बनाना है ।।2
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अस्त्र हमारे दिव्य मंत्र हैं, यंत्रों के हम पारंगत ।
साक्षी हैं पंचांग हमारे, सीना ठोक बताना है ।।3
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अपनी संस्कृति धर्म सनातन, कर्मवीर हम हैं योगी ।
विश्व बंधु का भाव जगत में, पुनः हमें फैलाना है ।।4
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रहे अहिंसा के हम पोषक, जियें और जीने देते ।
पर हम कायर नहीं , वीर हैं, दुश्मन को समझाना है ।।5
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ज्ञान शून्य का दिया जगत को, जन्मजात हैं शिक्षक हम ।
जगद्गुरू श्री कृष्ण हमारे, जग को पाठ पढ़ाना है ।।6
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रूप अनूप हमारा प्यारा, तलवारों से सजता है ।
हम भारत माता के सुत हैं, अनुप हमारा बाना है ।।
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महेश जैन ‘ज्योति,
मथुरा !
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