गीतिका
गीतिका-
लाख कहें ये दुनिया वाले,किस्मत अपनी खोटी है।
बात खुशी की श्रम करने से,मिल ही जाती रोटी है।।
उसके प्रति भी जिम्मेदारी ,हमें निभानी है पूरी,
बहन हमारी भले उम्र में ,हमसे थोड़ी छोटी है।
भारत माँ की रक्षा के हित,हम सब भारतवासी हैं,
भले शीश पर पगड़ी, टोपी,और कहीं पर चोटी है।
जो भी है संतोष करो अब ,रोना-धोना ठीक नहीं,
भाग्यवान हो पत्नी तो है, चाहे दुबली, मोटी है।
शकुनि सरीखा धोखा देता,संबंधों को भूल गया,
स्वार्थ और लालच में डूबा ,फेंक रहा हर गोटी है।
डाॅ बिपिन पाण्डेय
रुड़की ( हरिद्वार)