गीतिका
धीमा हुआ विकास ,यही तो चिंता है।
हैं सब लोग उदास ,यही तो चिंता है।।
करें उपद्रव खूब ,मुखर सब झूठे हैं,
सत्य सहे उपहास ,यही तो चिंता है।।
अफवाहों की बेल ,कराती है दंगा,
टूट रहा विश्वास , यही तो चिंता है।।
अपनेपन के फूल ,फसादों में सूखे,
गया शांति मधुमास,यही तो चिंता है।।
जन-सेवा के नाम ,कमाई करते हैं,
डूबे भोग विलास ,यही तो चिंता है।।
जो करते हैं काम,सभी हर मौसम में,
वही करें उपवास,यही तो चिंता है।।
सारे नीति- विधान, बनातीं सरकारें,
मिटे नहीं संत्रास ,यही तो चिंता है।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय