गीतिका
कठिन साधना सी मेहनत है,पर लाचारी गाँवों में।
नहीं मिटाए मिटती फैली, हर दुश्वारी गाँवों में।।1
हरे – भरे हैं खेत चतुर्दिक ,पुष्पावलियाँ झूम रहीं,
भरें ताज़गी जो हर मन में,वो फुलवारी गाँवों में।।2
छोड़ शहर की चकाचौंध को,आज चुनावी मौसम में,
भोली जनता को बहलाने ,गए शिकारी गाँवों में।।3
कैसे मिटे समस्या कोई,समाधान कैसे निकले,
खाना पूरी करने जाते,बस अधिकारी गाँवों में।।4
सीधा सादा सरल बड़ा है,अब भी जीवन लोगों का,
ठीक तरह से पहुँच न पाई ,है गद्दारी गाँवों में।।5
भले प्रदूषण यहाँ नहीं है,पर चिंता की बात बड़ी,
पाँव पसारे बैठी दिखती ,हर बीमारी गाँवों में।।6
क्रूर काल के लाख थपेड़े,उसको सहने पड़ते हों,
सीता बनकर डोल रही है,फिर भी नारी गाँवों में।।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय