गीतिका
वन्दित हरी- भरी वसुंधरा , रंग रूप कमाल है
प्रहरी उत्तुंग शिखर है अडिग रक्षक वो विशाल हैं
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मेखला पावनी नदियां जो निरंतर सस्वर बहें
विविध बोलियां भाषाओं से ऊँचा हुआ भाल है
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नित्य बढ़ती जनसंख्या इधर आपदाएं भी मगर
मानव को तो घेर रहा इक रोटी का सवाल है
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नारी नहीं रही सुरक्षित अब अस्मिता है लुट रही
बेटी बचाओ पढ़ाओ का फिर भी अहम ख्याल है
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महंगाई से पिस रहे उस गरीब को होश कहाँ
नेताओं को चिंता कैसी हुए मालामाल हैं
शारदा मदरा