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28 Dec 2017 · 1 min read

“गीतिका”

“गीतिका”

यादें सहज अतीत मिली है
वीणा को संगीत मिली है
मन महफिल पहचान मिली
धूप खिली है शीत मिली है॥

वाह अनोखा है यह संगम
बहुत पुरानी प्रीत मिली है॥

कुछ न कहना कुछ नहीं सुनना
चाहत आज सभीत मिली है॥

ललक परखती आँख पुरानी
बिछड़े मौसम मीत मिली है॥

आओगे तुम एकबार क्या
सुनने मुझे प्रतीत मिली है॥

असमंजस में आया “गौतम”
नयन भिगाती रीत मिली है॥

महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

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