“गीतिका”
“गीतिका”
खुले गगन आकाश, परिंदों सा तुम उड़ना
जब तक मिले प्रकाश, हौसला आगे बढ़ना
भूल न जाना तात, रात भी होती पथ पर
तक लेना औकात, तभी तुम ऊपर चढ़ना।।
सहज सुगम अंजान, विकल होती है सरिता
बैठे कहाँ विमान, तनिक इसको भी पढ़ना।।
रखना नियती शुद्ध, बुद्धि को बंद न करना
राहें हों अवरुद्ध, खोलकर उनसे लड़ना।
होना नहीं निराश, अनल का पुंज अनवरत
अपने पौरुष प्यास, घड़िला प्यार का गढ़ना।।
कभी न होगी हार, जीत जाएगी वसुधा
पर्वत है साकार, आवरण उसपर मढ़ना।।
गौतम तेरा स्नेह, मुग्ध जन जन को पहुँचे
रिमझिम बरसे मेंह, बादरी बूँद न नड़ना।।
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी