गीतिका
जीना -जीकर मर जाना , भैया यह क्या बात हुई.
कठिन समय में डर जाना,भैया यह क्या बात हुई.
कोई मरे कुपोषण से, कोई अतिशय खा -पी कर,
प्रश्न टाल कर घर जाना, भैया यह क्या बात हुई.
झांसे में रखना सबको, और बातों से खुश कर देना,
पल – पल पलट -मुकर जाना, भैया यह क्या बात हुई.
कुदरत की सुन्दरतम रचना, मानव है ध्रुव सत्य यही,
उसका मचल – बिखर जाना .भैया यह क्या बात हुई.
प्रबल शक्ति का मालिक होता , मानव अविवादित है ए,
निर्बल का हक चट कर जाना,भैया यह क्या बात हुई.
‘सहज’ नहीं मिल पाती मंजिल, बिना लक्ष्य निर्धारण के,
बिना पंख उड़ ऊपर जाना,भैया यह क्या बात हुई.
-डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/साहित्यकार
सर्वाधिकार सुरक्षित