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12 Oct 2016 · 1 min read

गीतिका

अभी तो बस जरा हमने कला अपनी दिखायी है
समझ में लग रहा उसको भली सब बात आयी है।1

अमन की कोशिशों को अब तलक वह ढ़ोंग कहता था,
लगा झटका घुसरती जा रही सारी ढ़ी’ठाई है।2

मजा आता बहुत उसको मुफत का माल खाने में,
कहाँ टिकती कभी जो भीत बालू की बनायी है?3

अकेले में लगाते गर बहुत दिलवर जमाने में,
निभाने की घड़ी सबने बड़ी आँखें दिखायी है।4

निहायत बेसुरा बनता किसीकी बात में आकर,
मिली है कैद ही उसको कहाँ होती रिहाई है।5

दिये आँसू अभी तक तो सभी को बेवजह उसने,
छिपाते चल रहा खुद के नजर उसकी लजायी है।6

रहें खुशहाल सब हमको जरा खुशहाल रहने दें,
यही अपनी जरूरत बस यही अपनी दुहाई है।7
@मनन

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