गीतिका ( पहले भी था अब भी है)
पहले भी था अब भी है
×××××÷×××××××
सजा भुगतना बेगुनाह का,
पहले भी था अब भी है।
कवि का मकसद वाह वाह का।
पहले भी था अब भी है।
ब्याह हुआ अब उस लड़की के,
बच्चे भी स्कूल चले,
पापा के सिर कर्ज ब्याह का ।
पहले भी था अब भी है ।
बदल गई सरकार मगर,
हालात कृषक के न बदले,
वही इरादा आत्मदाह का,
पहले भी था अब भी है।
जिसके पास नहीं है कुछ भी,
इस दुनिया में खोने को,
उसका रुतबा शहंशाह का,
पहले भी था अब भी है।
तुझको पाने के चक्कर में,
क्या क्या नहीं सहा मैंने,
यह जग दुश्मन प्रेम राह का ,
पहले भी था अब भी है।
तीन बीबियाँ तेरह बच्चे,
प्रगति अभी भी जारी है,
मन में अरमा फिर निकाह का,
पहले भी था अब भी है।
लिखें हास्य,गंभीर लिखें
या छंदों की बरसात करें,
भाव गुरू जी वतन चाह का,
पहले भी था अब भी है।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
14/7/23